शुक्र धातु (Shukra Dhatu) – कार्य, शुक्र क्षय, शुक्र वृद्धि के लक्षण

शुक्लयति त्यजति । शुक्लः रजतं शुक्लम् वीर्यम् ।

शुक्र शब्द शुच धातु जो कि शुद्धता के अर्थ में प्रयुक्त है। उसमें रक् प्रत्यय लगने से बनता है जिसका अर्थ बिल्कुल शुद्ध, निर्मल या स्वच्छ हो वह शुक्र कहा जाता है। र एवं ल अक्षरों में संस्कृत भाषा में भेद नहीं माना है। स्थान पर शुक्ल का प्रयोग भी किया जाता है।

शुक्र, कली। शुच क्लेद और ऋजेन्द्राग्रवज्रेति। (राज निघण्टु)
शुक्र न शुच रक् न कुत्वम् (वाचस्पत्यं 6 वां भाग)

नपुंसक लिंग में शुचि क्लेद अर्थात् क्लेदार्थक शुची धातु से नपुंसक लिङ्ग औणादिक रक् प्रत्यय करके शुक्र शब्द सिद्ध होता है। जिसका अर्थ क्लेदोमय शरीर तत्व का बोध होता है।

शुक्र धातु (Shukra Dhatu) - कार्य, शुक्र क्षय, शुक्र वृद्धि के लक्षण

शुक्र के पर्याय :-

मज्ज समुद्भव, आनन्दप्रभव, तेज, किट्ट विवर्जित, पुंसत्व, ओज, वीर्य, रेतस, धातुस्नेह

शुक्र का स्वरूप :-

सौम्यं शुक्रं आर्तवमाग्नेय (दो. धा. वि. वितर्क पृ. सं. 217)

शुक्र द्रव धातु है एवं पाँच भौतिक द्रव्य है फिर भी इसमें सौम्य गुण की प्रधानता होती है। यह कफ वर्गीय द्रव्य है। यह कफ का आश्रय स्थान है। शुक्र आहार पाक का अन्तिम परिणाम है।

बहलं मधुरं स्निग्धमविस्रं गुरु पिच्छिलम्।
शुक्लं बहु च यच्छुक्रं फलवत्तदसंशयम्॥ (च. वि. 2/4/50, चक्रपाणि)

बहल, मधुर, स्निग्ध, अविस्र, गुरु, पिच्छिल, श्वेत, प्रचुर मात्रा में हो ऐसा शुक्र संतान उत्पत्ति देने वाला होता है।

स्निग्धं घनं पिच्छिलंच मधुरं चाविदाही चा
रेतः शुद्धं विजानीयाच्छ्वेतं स्फटिकसन्निभम्।। (च. वि. 30/145)

शुद्ध शुक्र स्निग्ध, घन (गाढा), पिच्छिल, मधुर, अविदाही, स्फटिक के समान श्वेत होता है।

स्फटिकाभं द्रवं स्निग्धं मधुरं मधुगंधि च।
शुक्रमिच्छन्ति केचित्तु तैलक्षोद्रनिभं तथा।। (सु. शा. 2/13 )

  • स्फटिक के समान श्वेत
  • द्रव
  • स्निग्ध
  • मधुर
  • मधु गंधि
  • तैल एवं शहद की आभा वाला

शुद्ध शुक्र के लक्षण है।

शुक्र धातु की उत्पत्ति

अस्थ्नो मज्जा ततः शुक्र ————–प्रसादजः। (च. चि. 15/16)

अर्थात् मज्जा से शुक्रधातु की उत्पत्ति हुई है। (क्षीरदधिन्यायानुसार)

एक कालपोषण न्याय के अनुसार रस में उपस्थित शुक्र सधर्मी अंश पर शुक्राग्नि की क्रिया से शुक्रधातु की उत्पत्ति हुई है।

रस में उपस्थित शुक्रसधर्मी अंश + शुक्राग्नि की क्रिया = शुक्र धातु की उत्पत्ति

शुक्र का शरीर में स्थान

यथा मुकुल पुष्पस्य सुगन्धो नोपलभ्यते।
लभ्यते तद्विकाशात्तु तथा शुक्रं हि देहिनाम्।। (च. चि. 2/4/39)

अर्थात् पुष्प की कली (Bud) से सुगन्ध नहीं आती है परन्तु जब वह कली खिल जाती है, तो लगती है। शुक्र धातु सम्पूर्ण शरीर में पायी जाती है। बाल्यावस्था में अव्यक्त रूप में रहती है एवं युवावस्था प्राप्त होने पर यह व्यक्त हो जाती है। अतः शुक्र धातु सम्पूर्ण शरीर में एवं जीवन की सभी अवस्थाओं में पायी जाती हैं।

रस इक्षौ यथा दघ्निं सर्पिस्तैलं तिले यथा।
सर्वत्रानुगतं देहे शुक्रं संस्पर्शने तथा ।
तत् स्त्री पुरुष संयोगे चेष्टा संकल्प पीडनात् ।
शुकं प्रच्यवते स्थानाज्जलमार्द्रात पटादिव। (च. चि. 2(4) 46-47)

जिस प्रकार गन्ने में (Entrie sugar cane plant) रस, दही में घृत (Ghee) एवं तिलों में तैल (Oil) होता है वैसे ही सम्पूर्ण शरीर में जहाँ-जहाँ संस्पर्शन (Which gets sensation to touch) होता है, वहाँ शुक्रधातु होती है। शरीर में जहाँ संस्पर्श का अभाव जैसे नख, केशादि में शुक्रधातु नहीं पायी जाती है। जैसे कपडे को निचोडते है (Wet cloth when squeezed) तो पानी निकलता है वैसे ही संभोग की चेष्टा, संकल्प एवं पीडन से शुक्र धातु का उत्सर्जन (Tickles out from it’s site) होता है।

शुक्र के संदर्भ में संहिताओं का सूक्ष्म रूप से अध्ययन करने से पता चलता है कि शुक्र दो प्रकार का होता है।

  1. धातुरूप शुक्र
  2. उत्पादक शुक्र

1. धातु रूप शुक्र :- धातुरूप शुक्र Semen या Ovum नहीं बल्कि इन उत्पादक शुक्रों को उत्पन्न करने वाले द्रव्य है जो सम्पूर्ण शरीर में गन्ने में रस, दही में घृत एवं तिलों में तेल के समान सम्पूर्ण शरीर पाया जाता है।
रसो इक्षो यथा दध्नि सर्पिस्तैलं तिले यथा।
सर्वत्रानुगतं देहे शुक्र संस्पर्शने तथा|| (च. चि. 2/4/46)

शुक्र धातु के कार्य :

शुक्रं धैर्य्यं च्यवनं प्रीति देहबलं हर्ष बीजार्थ चा)(सु. सू. 15/0)

  • धैर्य
  • च्यवन
  • प्रीति
  • देह बल
  • हर्ष
  • बीजार्थ

1. धैर्य :- धैर्य मनोगुण है। देह एवं मन दोनों की दृष्टि से कष्ट सहन करने का सामर्थ्य, प्रतिकूल परिस्थिति, शारीरिक श्रम, कष्ट, रोग पीड़ा, क्षुधा, तृषा आदि को सहन करना तथा मानसिक श्रम एवं कष्ट, काम, भय, शोक आदि आवेगों से अविचिलित होकर दृढ़ता से मुकाबला करना धैर्य होता है। ये कार्य Semen के नहीं है बल्कि शुक्र धातु के कार्य हैं। शुक्रधातु पुरुष एवं स्त्री दोनों में पायी जाती है। अतः धैर्य शुक्र धातु का कार्य है।

2. प्रीति :- शुक्र का प्रमुख एवं प्रथम कर्म गर्भोत्पादन है। इसमें प्रीति पूरक कर्म है। प्रीति शब्द का अर्थ स्त्रियों के विषय में विशेष रुचि, आकर्षण, भोग दृष्टि, नारी देह में आसक्ति प्रतीत होती है वैसे हि स्त्रियों में पुरुषों के प्रति आकर्षण या आसक्ति का पाया जाना। संक्षेप में हम कह सकते हैं कि विपरीत लिङ्ग के प्रति आकर्षण (Attraction between opposite sex) ही प्रीति है। यह कार्य शुक्रधातु का है।

3. देहबल :- शुक्र धातु देह का उपचय या वृद्धि एवं शक्ति सामर्थ्य उत्पन्न करता है। शुक्रधातु बाल्यावस्था से युवावस्था आती है तब शनैः शनैः पुष्टि एवं बल बढते-बढते पच्चीस वर्ष तक धातुओं में सम्पूर्णता तथा 40 वर्ष तक बल अपनी पूर्ण सीमा तक वृद्धि को प्राप्त होता है जिसका समत्वागत वीर्य अथवा सम्पूर्णता कहा जाता है।

देहबल से उत्पादक शुक्र का कोई विशेष सम्बन्ध नहीं है। अर्थात् यह भी सर्व शरीर में व्याप्त शुक्र धातु का कर्म प्रतीत होता है।

4. हर्ष :- हर्ष से तात्पर्य यहाँ न केवल ध्वज प्रहर्ष (Penile erection) से बल्कि सम्पूर्ण गात्र प्रहर्ष से लेना अभीष्ट प्रतीत होता है। ध्वज प्रहर्ष का सम्बन्ध शुक्र (उत्पादक) से तो है ही अन्य कारक रक्त संचरण से भी है। जब पुरुष कामोत्तेजित होता है तो ऐसी अवस्था में शारीरिक एवं मानसिक परिवर्तन होते हैं। जैसे गात्रोत्तेजना, हृदय गति का बढना, रक्तदाब का बढ जाना, ध्वज प्रहर्ष, गमन (Sexual Disire) की प्रबल आकांक्षा आदि इन शारीरिक एवं मानसिक परिवर्तनों का कारण धातुरूप शुक्र होता है न कि उत्पादक शुक्र।

5. च्यवन :- च्यवन का अर्थ स्वस्थान से चलित होना, हटना अथवा क्षरण, पतन या गिरना होता है। स्त्री दर्शनादिभिः शुक्रं कदाचित् चलितं भवेत्। गर्भोत्पादक कर्म का सहायक कर्म है जो कि धातुरूप शुक्र धातु का कर्म है।

6. बीजार्थ अथवा गर्भोत्पत्ति :- शुक्र का प्रमुख कार्य गर्भोत्पत्ति बताया है। बीज का जो अर्थ या प्रयोजन या कर्म है, वही प्रयोजन शुक्र का है। बीज अंकुर क्षय होना चाहिए और नये वृक्ष को उत्पन्न करने में समर्थ होना चाहिए तभी बीज कहा जाता है। शुक्र धातु उत्पादक शुक्र जिसमें शुक्राणु पाये जाते है उन्हें पोषण एवं परिपक्व कर गर्भोत्पत्ति करने के लिए समर्थ बनाती है। आधुनिक दृष्टि से विचार करे तो FSH, LH एवं Testosterone ऐसे हार्मोन है जो शुक्राणुओं एवं Ovum की उत्पत्ति एवं परिपक्वता में इनका महत्त्वपूर्ण योगदान रहता है।

शुक्र क्षय के कारण :-

जरया चिन्तया शुक्रं व्याधिभिः कर्मकर्षणात्।
क्षयं गच्छत्यनशनात् स्त्रीणां चातिनिषेवणात्।। (च. चि. 2 (4) 43)

  • वृद्धावस्था (Old age)
  • अति चिन्ता करना (Mental worries)
  • व्याधि के कारण (Due to Disease)
  • अत्यधिक परिश्रम से कृशता होने से (Weakness due to hard work)
  • कुपोषण (Malnutrition/ Less quantity of food / not taking food or starvation)
  • मैथुन की अधिकता (Excessive indulgence in sex)

शुक्र क्षय के लक्षण :-

दौर्बल्यं मुखशोषश्च पाण्डुत्वं सदनं श्रमः ।
क्लैव्यं शुक्राविसर्गश्च क्षीणशुक्रस्य लक्षणम्।। (च. सू. 17/70)

  • दुर्बलता (Weakness of body)
  • मुखशोष (Feeling of dryness in mouth)
  • पाण्डुता (Pallor of the skin)
  • सदन (Losseness / Lassifuale)
  • श्रम (Exertion)
  • नपुंसकता (Impotence)
  • आयुर्वेदिक शरीर क्रिया विज्ञान
  • शुक्राविसर्गश्च (Little quantity of semen or even blood after a prolonged and
  • pain ful coitus)

शुक्रधातु वृद्धि के लक्षण :-

अतिस्त्रीकामतां वृद्धं शुक्रं —– 1 (अ. ह. सू. 11/12)

  • मैथुनेच्छा का बढ जाना (Excessive desire to do coitus)
  • उत्पादक शुक्र एवं धातुरूप शुक्र की अधिकता होना।

उत्पादक शुक्र (Semen)

  • स्वरूप :- पूर्व में विभिन्न आचार्यों के अनुसार बहल मधुरादि गुण उत्पादक शुक्र के वर्णन कर दिये है। उत्पादक शुक्र सौम्य होता है।
  • कार्य :- शुक्राद्गर्भः प्रजायते ।

शुक्र से गर्भोत्पत्ति होती है।

शुक्र क्षय के लक्षण :-

शुक्रक्षये मेढ्रवृषणवेदनाऽशक्तिर्मैथुने चिराद्वा प्रसेकः प्रसेके चाल्परक्त शुक्रदर्शनम्। (सु. सू. 15/13)

  • मेढ्र एवं वृषण में वेदना (Pain in penis & testis)
  • मैथुन की शक्ति का न होना (Dificulty or unable to do coitus)
  • देर से शुक्र का स्खलन अथवा शुक्र का कम निकलना अथवा रक्त मिश्रित शुक्र का स्खलन होना (Ejaculation of semen in difficult or little quantity of semen or along with blood after a prolonged and painful coitus)

शुक्रे चिरात् प्रसिच्येत् शुक्रं शोणितमेव वा।
तोदोऽत्यर्थं वृषणयोमेढूं धूमायतीव च।। (अ. ह. सू. 11/20)

  • देर से शुक्र का स्खलन होना। (Ejaculation of semen after prolonged coitus)
  • शुक्र के साथ रक्त मिश्रित होना। (Semen along with blood)
  • तोद (Pricking types of pain) (During Coitus)
  • वृषण एवं मेद्र से धूंआ निकलने की प्रतीति होना। (Burning sensation of testis & Penis)

शुक्र वृद्धि के लक्षण

शुक्रं शुक्राश्मरीमति प्रादुर्भावं च। (सू. सू. 15/14)

  • शुक्राश्मरी
  • शुक्र की अति प्रवृत्ति

शुक्र धातु का प्रमाण :-

मस्तिष्कस्यार्धञ्जलिः शुक्रस्यतावदेव प्रमाणम्। (च.शा. 7/15)

मस्तिष्क के समान ही शुक्र अर्ध अंजलि प्रमाण होता है।

शुक्रवहस्रोतस् :- शुक्रवहस्रोतस के मूल वृषण एवं शेफ है। (च. वि. 5/9)

शुक्रवहे द्वे तयोमूलं स्तनौ वृषणौ च।
तत्र विद्धस्य क्लीवता चिरात् प्रसेको रक्त शुक्रता च।। (सु. सू. 9/21)

अर्थात् शुक्रवह स्रोतस् दो वृषण एवं स्तन होते है इनके विद्ध होने पर क्लीवता एवं देर से एवं रक्त मिश्रित शुक्र का स्खलन होता है।

शुक्रवह स्रोतस् की दृष्टि के कारण :-

अकाल योनि गमनान्निग्रहादतिमैथुनात्।
शुक्रवाहीनि दुष्यन्ति शस्त्रक्षाराग्निभिस्तथा।। (च. वि. 5/19)

  • असमय में मैथुन करने से (Doing coitus during inappropriate time) अयोनि या निषिद्ध योनि में मैथुन (Doing coitus with unsuitable yoni)
  • शुक्र के वेग को रोकने से
  • अति मैथुन
  • शस्त्र, क्षार एवं अग्नि कर्म से

शुक्रवह स्रोतस् की दुष्टि के लक्षण :-

क्लैव्याप्रहर्षशुक्राश्मरी शुक्रदोषादयश्च तद्दोषजाः। (सु. सू. 25/16)

  • क्लीवता (Sterlity)
  • अप्रहर्षण (लिङ्ग शैथिल्य) (Impotence)
  • शुक्राश्मरी एवं शुक्रमेह
  • वातादि दोषों से दूषित शुक्र के लक्षण है।

दूषित शुक्र के लक्षण :-

फेनिलं तनु रुक्षं च विवर्णं पूति पिच्छिलम्।
अन्यधातूपसंसृष्टमवसादी तथाऽष्टमम्।। (च. चि. 30/139)

  • फेनिल (Frothy in nature)
  • तनु (Thiny
  • रुक्ष (Dry)
  • faquf (Abnormal colour)
  • पूति (Foul smelling)
  • पिच्छिल (Excessive stickyness)
  • अन्यधातु के साथ मिश्रित (Mix with other dhatu) 8.
  • अवसादी (Sinking in water)

वातदुषित शुक्र

फेनिलं तनु रुक्षं च कृच्छ्रेणाल्पं च मारुतम्।
भवत्युपहत शुक्रं न तद्गर्भाय कल्पते।। (च. चि. 30/139)

  • फेनिल (Frothy in nature)
  • तनु (Thiny)
  • रुक्ष (Dry)
  • कष्ट से अल्प मात्रा में प्रवृत्ति (Little quantity of semen come out even after prolonged coitus)

पित्तदूषित शुक्र

सनीलमथवा पीतमत्युष्णं पूति गंधि च।
दहल्लिङ्गं विनिर्याति शुक्र पित्तेन दूषितम्।। (च. चि. 30/141-42)

  • नीले अथवा पीले वर्ण का (Colour become yellow or blue)
  • अत्यन्त उष्ण (Very warm in nature)
  • दुर्गन्धित (Foul smell)
  • प्रवृत्ति के समय मार्ग में दाह उत्पन्न करने वाला (At the time of ejaculation generate burning sensation to the seminal path)

कफ दुषित शुक्र के लक्षण

श्लेष्मणा बद्धमार्ग तु भवत्यत्यर्थपिच्छिलम्। (च. चि. 30/142)

  • शुक्र के मार्ग में अवरोध उत्पन्न होना (Obstruction in seminal path)
  • शुक्र का अत्यन्त पिच्छिल होना (Exessive stickyness of semen)

रक्त दुषित शुक्र के लक्षण

स्त्रीणामत्यर्थं गमनादभिधातात्क्षतादपि।
शुक्रं प्रवर्तते जन्तोः प्रायेण रुधिरान्वयम्।। (च. चि. 30/143)

कारण :-

  • अत्यधिक मैथुन
  • अभिघात
  • क्षय से


लक्षण :- रक्त से मिश्रित शुक्र की प्रवृत्ति होना।

वात एवं कफ दूषित शुक्र

वेगसन्धारणच्छुक्रं वायुना विहत पथि।
कृच्छ्रेण याति ग्रथितमवसादि तथाऽष्टमम्।। (च. चि. 30/144)

  • शुक्र के वेग का रोकने से
  • मार्ग में अवरोध के कारण रुका हुआ
  • बड़े कष्ट से निकलने वाला
  • अवसादी

सुश्रुत के अनुसार कफ एव वात से दूषित शुक्र गांठदार होता है।

पित्त कफ दूषित शुक्र के लक्षण

पूतिपूयनिभं पित्तश्लेष्मभ्यां ।। (सु. शा. 2/3)
पित्त एवं कफ दोनों से दूषित शुक्र दुर्गन्ध एवं पूय से दूषित होता है।

वात पित्त दूषित शुक्र

क्षीणं प्रागुक्तं पित्तमारुताभ्याम् । (सु. शा. 2/3)

पित्त एवं वायु से दूषित शुक्र पूर्व में कहे गये पित्त एवं वायु के लक्षणों से युक्त अर्थात् नीला, पीला, रुक्ष, फेनिल आदि मिश्रित लक्षण वाला होता है।

सन्निपात दूषित शुक्र

मूत्र पुरीषगंधि सन्निपातेन (सु. शा. 2/3)

तीनों दोषों से दूषित शुक्र, मूत्र एवं पुरीष की गंध वाला होता है।

शुक्रसार पुरुष के लक्षण-

सौम्याः सौम्यप्रेक्षिणः क्षीरपूर्णलोचना इव प्रहर्षबहुलाः स्निग्धवृत्तसारसंहत शिखरदशनाः प्रसन्नस्निग्धवर्णस्वरा भाजिष्णवो महास्फिचश्च शुक्रसाराः।

ते स्त्री प्रियोपभोगा बलवन्तः सुखैश्वर्यारोग्यवित्तसम्मानापत्यभाजश्च भवन्ति। (च. वि. 8/109)

  1. सौम्य (Very calm in nature)
  2. सौम्यदृष्टि वाला (Pleasing look)
  3. क्षीर पूर्ण लोचना वाला (Conjuctiva as white as milk)
  4. प्रहर्ष बहुलता वाला (Whelming enthusiasm) (Marked libido)
  5. स्निग्ध, वृत्त, बराबर एवं एक दूसरे से सटे दोंतो वाला (Unctuous teeth, round, firm & compact teeth)
  6. वर्ण एवं स्वर स्निग्ध हो जिसके (Attractive and unctuous skin & attractive and melodius voice)
  7. शरीर कान्ति वाला हो (Glowing body)
  8. बड़े नितम्ब वाला (Broad buttocks)
  9. स्त्रीप्रिय (Liked by female)
  10. उपभोग करने वाला (Do enjoy with laxurious life)
  11. बलवान (Strong)
  12. सुख (With happy)
  13. ऐश्वर्यवाले (Fortune enough)
  14. आरोग्य (Healthy)
  15. वित्त, सम्मान एवं संतान युक्त (Wealthy, respectable and high progening capicity)

स्निग्धसंहत श्वेतास्थिदन्तनखबहलकामप्रजंशुक्रेण (सु. सू. 35/11)

  • स्निग्ध एवं धन शरीर वाले
  • श्वेत अस्थि, नख एवं दंत वाले
  • अधिक काम शक्ति वाले