मांस धातु (Mansa Dhatu) – कार्य, मांस क्षय, मांस वृद्धि के लक्षण

by DR. HAMID HUSSAIN
मांस धातु (Mansa Dhatu) - कार्य, मांस क्षय, मांस वृद्धि के लक्षण

मांस की व्युत्पत्ति :- मांस शब्द माङ् धातु से बना है जिसका अर्थ है जिसे नापा जा सके।

मांस के पर्याय :- पललम्, पिशित, क्रव्य आदि।

मांस धातु की उत्पत्ति :- मांसवह स्रोतस् में मांस सधर्मी अंश पर मांसाग्नि की क्रिया के पश्चात् मांस धातु का निर्माण एवं पोषण होता है।

मांस सधर्मी अंश – मांस धातु स्थिर, गुरु, स्थूल, खर एवं कठिन गुणों से युक्त होती है। जब इन गुणों से युक्त आहार प्रोटीन एवं वसा युक्त भोजन जैसे दाल, दूध, मांस, मछली, अण्डा आदि का सेवन किया जाता है तो पाचनोपरान्त मांससधर्मी अंश का निर्माण होता है। यह मांस सधर्मी अंश रस संवहन के द्वारा मांसवह स्रोतस् स्नायु, त्वचा एवं रक्तवाहीनि धमनियों में पहुँचकर मांसधातु का निर्माण करता है।

रसाद्रक्तं ततो मांसं—————-I (च. चि. 15/16)

अर्थात् रस से रक्त एवं रक्त से मांस धातु का निर्माण होता है।

रक्तं वर्णप्रसादं मांसपुष्टिं जीवयति च। (सु. सू. 15/7)

रक्त वर्ण प्रसादन के साथ-साथ मांस की पुष्टि करता है, अर्थात् मांसधातु का पोषण करता है।

वाय्वम्बुतेजसा रक्तमुष्णा चाभिसंयुक्तम्।
स्थिरतां प्राप्य मांस स्यात् स्वोष्मणा पक्वमेव तत। (च.चि. 15/29)

अर्थात् वायु, अम्बु (जल) तेज (अग्नि) की ऊष्मा से युक्त होकर रक्त स्थिरता को प्राप्त घन होकर मांस धातु में परिवर्तित होता है। इसके पश्चात् मांस धातु परस्पर विभक्त होकर पेशी रूप में परिवर्तित होते हैं-

मांसावयवसंधातः परस्परं विभक्तः पेशीत्युच्यते ।

मांस धातु शरीर में पेशियों के रूप में कोशिका की भित्ती में (Cell membrane), सिरा एवं धमनियों की भित्ती (Arteries & vein wall) में पाई जाती है। ये पेशियाँ अनेक प्रकार की होती है।

स्थूलाणुपृथुवृत्तहस्वदीर्घस्थिर मृदुश्लक्ष्ण कर्कशभावाः सन्ध्यस्थिसिरा स्नायु प्रच्छादका यथा प्रदेशं स्वाभावत एवं भवन्ति। (सु. शा. 5/52)

पेशिया स्वरूप में अनेक प्रकार की होती है बहल (Large), छोटी (Small), मोटी (Thick), अणु (Thin), चपटी (Flat), गोल (Round), ह्रस्व (Short) दीर्घ (Large), स्थिर (Firm), मृदु (Soft), श्लक्ष्ण (Smooth muscle) तथा खुरदरी (Rough) ये पेशियाँ संधि, अस्थि, सिरा एवं स्नायु को आच्छादन करने के लिए भिन्न-भिन्न आकार की होती है। आधुनिक मतानुसार पेशियों के भेद-

According to Function:-

  • Skeletal muscle
  • Cardiac muscle
  • Smooth muscle

According to control :-

  • Voluntary muscle
  • In voluntary muscle

According to striation :-

Striated muscle
Non striated muscle

मांस धातु का संगठन :- मांस धातु भी पाँच भौतिक होती है किन्तु पृथ्वी महाभूत की अधिकता के कारण इसे पार्थिव कहा जाता है।

आधुनिक मतानुसार मांसपेशी में 75% जल एवं 25% ठोस पदार्थ पाये जाते हैं –

  • प्रोटीन 20% – एक्टिन, मायोसिन, ट्रोपानिन, ट्रोपोमाइसिन, मायोग्लोविन, मायोग्लोबुलिन आदि।
  • वसा – कालेस्ट्रोल, लेसिथीन, उदासीन वसा पाये जाते हैं।
  • कार्बोहाइड्रेट – ग्लाइकोजन, टैक्सोजन फास्फेट
  • खनिज लवण :- पोटेशियम, फास्फेट, कैल्शियम, सोडियम, लौह आदि पाये जाते हैं।
मांस धातु (Mansa Dhatu) - कार्य, मांस क्षय, मांस वृद्धि के लक्षण

मांस धातु के कार्य-

मांस धातु लेपन (Coating) का कार्य करती है। अस्थि संधियों को आच्छादित (Cover) कर इनके कार्यों को सम्पन्न कराती है।

प्रीणनं जीवनं लेपः स्नेहो धारणा पूरणे ।
………………………………………………………..I (अ.सं.सू. 1/33)

लेपन का कार्य मांस धातु का है।

मांसशरीर पुष्टिं मेदश्च ॥ (सु. सू.15 / 7)

मांस धातु शरीर की पुष्टि एवं मेद का निर्माण एवं पोषण का कार्य करती है। मांस धातु की कमी से शरीर में दुर्बलता उत्पन्न होती है एवं शरीर कृश हो जाता है। मेद की पूर्व धातु होने के कारण यह मेद की पुष्टि एवं निर्माण करती है।

मांसक्षय के लक्षण

मांसक्षये विशेषेण स्फिग्ग्रीवोदरशुष्कता। (च. सू. 18/64)

स्फिग (Hip Region), ग्रीवा (Neck circumference) उदर (Abdomen) का शुष्क अर्थात् ये पतले एवं शुष्क होते हैं।

मांसक्षये स्फिग्गण्डोष्ठोपस्थोरुवक्षः कक्षापिण्डिकोदरग्रीवा
शुष्कता रौक्ष्यतोदो गात्राणां सदनं धमनीशैथिल्यं च। (सु.सू.15/13)

अर्थात् मांस के क्षीण होने पर स्फिग् (Hip region), गण्ड (Cheek Region), ओष्ठ (Lips), उपस्थ (Testis & penis), उरु (Thigh), वक्षः स्थल (Chest circumference), कक्षा (Axilla), पिण्डिली (Achillies Region), एवं उदर (Abdomen Circumference) में शुष्कता का उत्पन्न होना, रुक्षता (Dryness) अंङ्गावयवों में शिथिलता (Losseness of body parts) एवं धमनियों में शिथिलता (Loss of elasticity of arteries) होती हैं।

मांस क्षय का कारण

  • लघु, कटु, तिक्त, कषाय पदार्थों का अधिक सेवन करना।
  • उपवास, लंघन, परिश्रम की अधिकता।
  • रात्रि जागरण, मैथुन की अधिकता भी मांस क्षय के कारण हो सकते हैं।

आधुनिक मतानुसार कम कैलोरी का भोजन एवं अधिक परिश्रम इसका प्रमुख कारण है। अंतस्रावी ग्रंथि जैसे Thyroid gland की अतिसक्रियता, डाइविटीज हो सकते हैं।

मांस वृद्धि के लक्षण

मांस की वृद्धि होने पर मांसक्षय के विपरीत लक्षण उत्पन्न होते हैं। स्फिग, ग्रीवा, उदरादि प्रदेशों में मांस की अधिकता होने से ये प्रदेश स्थूल हो जाते है।

मांसं स्फिग्गण्डोष्ठोपस्थोरुबाहुजङ्घासु वृद्धि गुरु गात्रतां च। (सु.सू. 15/19)

मांस की वृद्धि होने पर स्फिग् (Buttock), गण्ड (Temporal Region), ओष्ठ, उपस्थ (Testis & Penis), बाहु (Hand circumference), जंघा (Thigh circumference) में मांस की अधिकता एवं अङ्गों में भारीपन होता है। ये लक्षण मांस की वृद्धि पर निर्भर करते है।

मांसं गण्डार्बुदग्रन्थिगण्डोरुदरवृद्धिताः।
कण्ठादिष्वधिमांसं च——————-I (अ. ह. सू. 11/10)

गलगण्ड (Goitre), गण्डमाला, अर्बुद (Tumor), ग्रंथि (Soft tumor), उरु वृद्धि (Deposition of extra fat in thigh) उदर वृद्धि (Increase adipose tissue in abdomen) एवं कण्ठ (Throat), तालु (Temporal region), जिह्वा आदि में अधिक मांस का संग्रह होना मांस वृद्धि के लक्षण है।

मांस वृद्धि के कारण

गुरु, स्निग्ध, अभिष्यन्दी भोजन का अधिक सेवन एवं दिवा शयन विशेष रूप से मांस वृद्धि का कारण है। अध्यशन भी इसका प्रमुख कारण है।

आधुनिक मतानुसार इसे स्थौल्य रोग कहते है जिसका प्रमुख कारण परिश्रम की कमी एवं ज्यादा कैलोरी का भोजन होता है।

दूसरा इसका प्रमुख कारण (Endocrine disease) जैसे Hypothyrodism जैसे कारण हो सकते हैं।

मांसवह स्रोतस्

चरकानुसार मांसवह स्रोतस् का मूल स्नायु एवं त्वचा को माना है। (च. वि. 5/10)

सुश्रुतानुसार मांसवह स्रोतस् का मूल स्नायु, त्वचा एवं रक्तवहन करने वाली धमनियों को माना है। ये दो होते हैं। (सु. शा. 9/12)

मांसवह दुष्टि के कारण :-

अभिष्यन्दीनि भोज्यानि स्थूलानि गुरुणि च।
मांसवाहीनि दूष्यन्ति भुक्त्वा च स्वपतां दिवा।। (च. वि. 5/15)

अभिष्यन्दी आहार अर्थात् दही, उडद से बने पदार्थ आदि, स्थूल एवं गुरु पदार्थ (ऐसे आहार जो शरीर में गुरुता भारीपन एवं स्थूलता उत्पन्न करें) को सेवन के उपरान्त दिन में शयन करने से मांसवह स्रोतस् की दृष्टि होती है।

  • व्यक्ति अधिक कैलोरी लेते है।
  • जठराग्नि मंद है।
  • भोजनोपरान्त शीघ्र शयन करते है विशेषतः दिन में,

ऐसे व्यक्तियों में मांसवह स्रोतस् की दुष्टि हो जाती है।

प्रायः दिखने को मिलता है कि अधिकांश वे व्यक्ति जो गुरु भोजन करने के बाद दिन में शयन करते है, उनके शरीर में गुरुता उत्पन्न हो जाती है एवं किसी कार्य को करने की इच्छा नहीं होती है। ये मांसवह दुष्टि के कारण ही उत्पन्न लक्षण है। यदि व्यक्ति निरन्तर इस प्रकार का आहार विहार करता है तो मांसवह स्रोतस् की दुष्टि हो स्थूलता उत्पन्न होती है।

मांसपेशियों की संख्या :-

चरकानुसार – 400 पेशियाँ है।
सुश्रुतानुसार – 500 पेशियाँ है
शाखाओं में – 400
कोष्ठ – 66
ग्रीवा के ऊर्ध्व भाग में – 34
कुल – 500

मांस प्रदोषज विकार

अधिमांसार्बुदं कीलं गलशालूकशुण्डिके।।
पूतिमांसालजीगण्डगण्डमालोपजिह्निका।

विद्यान्मांसाश्रयान् ———————–॥ (च. सू. 28/13-14)

  • अधिमांस (Extra growth of muscles)
  • मांसार्बुद (Myoma)
  • मांसकील (Polyps- Colon polyps, nasal polyps, Rectal polyps etc.)
  • गलशालूक (Adenoids/Nasopharyngeal tonsils)
  • गलशुण्डके (Elongated Uvala)
  • पूतिमांस (Like gangrene)
  • अलजी (Conjuctival intraepithelial neoplasia)
  • गण्डमाला (Codema in lymphnoids)
  • गलगण्ड (Goitre)
  • उपजिह्वा (Ranula sublingual gland)

मांससार पुरुष के लक्षण :-

शंखललाट कृकाटिकाक्षिगण्डहनुग्रीवास्कन्धोदरकक्षवक्षपाणिपाद सन्धयो गुरुस्थिरमांसोपचिका मांसाराणाम्।। सा सारता क्षमां धृतिमलौल्यं पित्तं विद्यां सुखमार्जवमारोग्यं बलमायुश्च दीर्घमाचष्टे।। (च.वि. 8/105)

शंख प्रदेश (Temporal region), ललाट (Forehead), कृकाटिका (Back of neak), अक्षि (Eye), गण्ड प्रदेश (Zygomatic bone region), हनु (Jaw), ग्रीवा (Neak), स्कन्ध (Shoulder), कक्ष (Axillary region), वक्ष (Thoracic region), पाणि पाद संधि (Hands & feet Joints), भारी, स्थिर, मांस की अधिकता से उपचित होती है। ऐसे व्यक्ति क्षमा, धैर्य, लालची न होना, विद्यावान, सुखपूर्वक जीने वाले, बलवान एवं दीर्घायु होते हैं।

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