मज्जा धातु (Majja Dhatu) – कार्य, मज्जा क्षय, मज्जा वृद्धि के लक्षण

अस्थियों के मध्य में जो खोखला भाग (Marrow cavity) होती है। उसमें मज्जा धातु होती है।

करोति तत्र सौषिर्य अस्थ्नांम मध्ये समीरणः ।
मेदस: तानि पूर्यन्ते स्नेहो मज्जा ततः स्मृतः।। (च. चि. 15/31-32)

वायु के द्वारा अस्थियों के मध्य में खोखला (Marrow cavity) का निर्माण होता है। उसी Cavity में जो स्नेह भाग भरा रहता है, उसे मज्जा कहते है।

स्थूलास्थिषु विशेषेण मज्जात्वभ्यन्तराश्रिताः।
अथेतरेषु सर्वेषु सरक्तं मेद उच्यते।। (सु. शा. 4/13)

बड़ी अस्थियों में जो विशेष रूप से मज्जा रहती है एवं छोटी अस्थियों में मेद स्थित रहता है। पीत मज्जा (Yellow bone marrow) को मज्जा माना है। मज्जा का निर्माण Connective tissue, Blood vessels, Precursors of WBC एवं अधिकांश भाग Fat Cells का होता है। इसे ही मज्जा माना गया है।

चक्रपाणि एवं डल्हण ने शिर में स्थित मस्तिष्क (Brain) के स्नेह को मज्जा माना है।

तृतीया मेदोधाराः, मेदो हि सर्वभूतानामुदस्थमण्वस्थिषु च महत्सु च मज्जा भवति।। (सु. शा. 4/12)

अर्थात् तीसरी मेदोधरा कला है। यह प्राणियों के उदर एवं छोटी अस्थियों में रहती है एव बडी अस्थियों के खोखलेपन में जो भरा रहता है, वह मज्जा है।

मज्जा धातु (Majja Dhatu) - कार्य, मज्जा क्षय, मज्जा वृद्धि के लक्षण

मज्जा की उत्पत्ति :-

रसाद्रक्तं —–प्रजायते। (च. चि. 15/15)

अर्थात् मज्जा की उत्पत्ति अस्थि धातु से हुई है। एक काल पोषण न्याय के अनुसार अन्नरस में विद्यमान मज्जा सधर्मी अंश पर मज्जाग्नि की क्रिया से मज्जा की उत्पत्ति हुई है।

मज्जा धातु का स्थान :- मज्जा धातु बडी अस्थियों अर्थात् Radius, Ulna, Humerus एवं Femur के Head को छोडकर Tibia, Febula में मज्जा धातु स्थित होती है। इन अस्थियों की Cavity में जो Bone marrow पायी जाती है उनमें Blood cells का निर्माण नहीं होता है बल्कि Fat cells की अधिकता हाती है जो आयुर्वेद की मज्जा धातु है।

मस्तिष्क का स्नेह भी मज्जा के अंतर्गत आता है।

मज्जा धातु के कार्य

मज्जा प्रीतीं स्नेहं बलं शुक्रपुष्टिं पूरणम् अस्थनाम् च करोति । (सु. सू. 15/16)

  • शरीर में प्रसन्नता उत्पन्न करना
  • शरीर में स्निग्धता उत्पन्न करना
  • बलोत्पत्ति (शारिरीक एवं मानसिक बल प्रदान करता है)
  • शुक्र धातु का पोषण
  • अस्थियों का पूरण करना

मज्जा धातु के क्षय के लक्षण :-

शीर्यन्ते इव चास्थीनि दुर्बलानि लघूनि च।
प्रततं वातरोगीणि क्षीणे मज्जनि देहिनाम्।। (च. सू. 17/68)

  • अस्थियों का दुर्बल (Weak) एवं लघु (Light) होना
  • वातज रोगोत्पत्ति होना।

मज्जक्षयेऽल्पशुक्रता पर्वभेद अस्थिनिस्तोद अस्थिशून्यता च। (सु. सू. 15/13)

  • अल्पशुक्रता (शुक्र का कम होना)
  • पर्वभेद (संधियों में टूटने जैसी पीडा)
  • अस्थियों में तोद (अस्थियों में सुई चुभने जैसी पीडा)
  • अस्थि शून्यता (अस्थियों में खोखलापन या कमजोर होना ये लक्षण मज्जा क्षय के है।

अस्थिसौषिर्यनिस्तोददौर्बल्यभ्रमतमोदर्शनैर्मज्जा। (अ.सं. सू. 19/10)

  • अस्थियों में सुषिरता का होना।
  • अस्थियों में पीडा (Pain in bones) दुर्बलता (Weakness)
  • भ्रम (Vertigo)
  • आँखों के सामने अंधकार का आना

मज्जा वृद्धि

मज्जा नेत्राङ्ग गौरवम्।।
पर्वसुस्थूलमूलानि कुर्यात्कृच्छाण्यरुंषि च।। (अ.हृ.सू. 11/11-12)

  • नेत्र एवं अङ्गों में भारीपन ।
  • पर्व संधियाँ मूल में स्थूल एवं कष्ट से ठीक होने वाली फुंसियों का होना।

मज्जा सर्वाङ्ग नेत्र गौरवं च । (सु. सू. 15/19)

  • सभी अङ्गों में एवं नेत्रों में भारीपन होना मज्जा वृद्धि का लक्षण है।

मज्जा का प्रमाण – 1 अंजलि बताया है।

मज्जावहस्रोतस्

मज्जावह स्रोतस् के मूल अस्थि एवं संधि है।

मज्जावह स्रोतस् की दुष्टि के कारण :-

उत्पेषादत्यभिष्यन्दादभिघातात् प्रपीडनात्।
मज्जवाहानि दुष्यन्ति विरुद्धानां च सेवनात्।। (च. वि. 5/18)

  • कुचल जाने से।
  • अभिष्यन्दी आहार सेवन से।
  • आघात से। दब जाने से।
  • विरुद्ध आहार सेवन करने से मज्जावह स्रोतस् दुष्ट होता है।

मज्जावह स्रोतस् की दृष्टि के लक्षण या मज्जा प्रदोषज विकार

रुक् पर्वणां भ्रमो मूर्च्छा दर्शनं तमसोऽसतः।
अरुषां स्थूलमूलानां पर्वजानां च दर्शनम्।।

मज्जा प्रदोषात्।। (च. सू. 28/17)

  • शरीर के संधि पर्वो में वेदना
  • भ्रम (Vertigo)
  • मूर्च्छा (Loss of Conciousness)
  • आँखों के सामने अंधेरा छाना
  • पर्वो पर स्थूल मूल वाली पिडिकाओं का होना।

तमोदर्शनमूर्च्छाभ्रमपर्वस्थूलमूलारुर्जन्मनेत्राभिष्यन्द प्रभृतयो मज्जाप्रदोषजाः।। (सु. सू. 24/15)

  • आँखों के सामने अंधकार का होना
  • मूर्च्छा
  • भ्रम
  • संधि पर्वों में स्थूलता उत्पन्न होना तथा व्रणों का होना
  • नेत्राभिष्यन्द होना (Conjunctivitis)

ये मज्जा प्रदोषज विकार हैं।

मज्जासार पुरुष के लक्षण :-

अकृशमुत्तमबलं स्निग्धगम्भीरस्वरं सौभाग्योपपन्नं महानेत्रश्च मज्ज्ञा। (सु. सू. 35/18)

  • अकृश (दुर्बल नहीं होते हैं)
  • उत्तम बल वाले
  • स्निग्धाङ्ग प्रत्यङ्ग वाले
  • गम्भीर स्वर वाले
  • सौभाग्यशाली
  • बडे नेत्र वालें

मज्जा सार व्यक्ति होते हैं।

तन्वङ्गा बलवन्तः स्निग्धवर्णस्वराः स्थूलदीर्घवृत्तसन्ध्यश्च मज्जासारः।
ते दीर्घायुषो बलवन्तः श्रुतवित्तविज्ञानापत्यसंमानभाजश्च भवन्ति।। (च. वि. 8 /108)

  • अङ्ग पतले लेकिन बलवान होते है।
  • वर्ण एवं स्वर स्निग्ध होता है।
  • स्थूल एवं दीर्घ संधि वाला होता है।
  • दीर्घायु, बलवान, शास्त्रों को जानने वाला, विज्ञान सम्पन्न, धनी, संतान युक्त, सम्मानीय होता है।

मज्जा का मल :-

नेत्र, पुरीष एवं त्वचा का स्नेह मज्जा के मल है।

किटं मज्ज्ञः स्नेहोऽक्षिविट्त्वचाम्। (च. चि. 15/18)

नेत्रविट्त्वक्षु च स्नेहो। (सु. सू. 46/527)

वसा, मेद एवं मज्जा में अंतर

वसा- शरीर में मांसगत स्नेहांश वसा है। वसा शरीर में संग्रहित स्नेह होता है, जिसे Neutral fat कहते है। Triglyceride lipid की torage form होती है जो कि Adipose tissue में पायी जाती है। 70 Kg वजन वाले व्यक्ति में 11 Kg Triglycerde पायी जाती है। व्यक्ति जब जीवित रहता है तब यह तरल रूप में एवं मृत होने पर धन रूप में हो जाती है, जिसे चर्बी कहते है।

मेद – आयुर्वेद मतानुसार मेद छोटी अस्थियों में अर्थात् बड़ी अस्थियों (Tibia, Febula, Femur, Redius, ulna, Humerus) को छोड़कर पायी जाती है, अर्थात् सरक्त मेद (Red bone marrow) को मेद धातु माना गया है। मेद धातु कोशिकाओं की Layer का भी निर्माण करती है।

मज्जा – बडी अस्थियों के खोखले भाग (Long Bone Cavity) में जो वसा कोशिका (Fat cells) पायी जाती है, उन्हें मज्जा कहा जाता है। ये Yellow bone marrow है।