धातु (Dhatu in Ayurveda) – धातु पोषण न्याय

by DR. HAMID HUSSAIN
धातु (Dhatu in Ayurveda) - धातु पोषण न्याय

सजीव एवं निर्जीव सृष्टि का निर्माण प्रकृति में पाये जाने वाले तत्व (Elements) के द्वारा होता है, इन्हीं तत्वों के संयोग से मानव शरीर का निर्माण होता है। इन तत्वों के द्वारा शरीर की कोशिकाओं का निर्माण होता है एवं कोशिकाओं (Cells) से ऊतकों (Tissue), ऊतकों से अन्न (Organs) एवं अन से संस्थान (Systems) एवं संस्थानों के द्वारा शरीर का निर्माण होता है।

आयुर्वेद मुख्य रूप से अथर्ववेद का उपवेद माना है एवं हमारे प्राचीन ग्रंथ रामायण, महाभारत सभी के अनुसार पंचमहाभूत को समस्त सजीव एवं निर्जीव सृष्टि के उत्पादक कारण माना गया है। इन ग्रंथों का अध्ययन करने से यह ज्ञात होता है कि समस्त सजीव एवं निर्जीव सृष्टि के उत्पादक तत्व पृथ्वी, जल, तेज, वायु एवं आकाश हैं।

आयुर्वेद मतानुसार हमारा शरीर भी इन पांच तत्वों के द्वारा निर्मित है। इन पंच तत्वों से शरीर की धातुओं का निर्माण होता है एवं इन धातुओं के द्वारा हमारा शरीर निर्मित होता है।

निरुक्ति (Etymology) :- (Study of the origin of words and the way in which their meanings have change through history)

धा + तुन् प्रत्यय के संयोग से धातु शब्द बना है। जिसका तात्पर्य वाचस्पत्यम् के अनुसार धृ धारयति दधाति है।

डुघाञ् धारणपोषणयोः।

अर्थात् शरीर का धारण एवं पोषण करे उसे धातु कहते हैं। धारण से तात्पर्य है ऐसे तत्व जो शरीर का निर्माण करे।

त एते शरीर धारणाद्धातवः इत्युच्यते। (सु. सू. 14/20)

अर्थात् ये (रसादि धातुएँ) शरीर का धारण (शरीर का निर्माण) करती है। इसलिए इन्हें धातु कहा जाता है।

धातु (Dhatu in Ayurveda) - धातु पोषण न्याय

धातु शब्द के अनेक अर्थ

धातु शब्द का प्रयोग अनेक अर्थों में हुआ हैं-

  • धारण एवं पोषण के अर्थ में – क्रिया शारीर में रसादि सात धातुओं के लिए प्रयुक्त है।
  • धातुओं के अंतर्गत वे सभी उपादान (सहयोगी) द्रव्य जो शरीर, मन एवं प्राणों को धारण करें।
  • धातु शब्द का प्रयोग एक धातु पुरुष में आत्मा के लिए, षड् धातुज पुरुष में आत्मा एवं पंचमहाभूत के लिए एवं चतुर्विंशति तत्वात्मक पुरुष में 24 तत्वों के लिए किया गया है। जिसका वर्णन पुरुष प्रकरण में कर दिया गया है।
  • रस शास्त्र में स्वर्ण, रजत, ताम्र, लौह आदि के लिए धातु शब्द का प्रयोग किया गया है, किन्तु शरीर क्रिया विज्ञान की दृष्टि से धातु शब्द का प्रयोग रसादि धातुओं के लिए उपयुक्त है।

आयुर्वेद मतानुसार सात धातु रस, रक्त, मांस, मेद, अस्थि, मज्जा एवं शुक्र को माना गया है। इन्हें दृष्य कहा जाता है।

रसाद्रक्तं ततो मांसं मासान्मेदस्ततोऽस्थि च।
अस्थ्नो मज्जा ततः शुक्रं शुक्रादगर्भः प्रजायतेः। (च.चि. 15/16)

धातु पोषण एवं निर्माण

शरीर में पाये जाने वाली सभी धातुओं का पोषण एवं निर्माण अन्न रस के द्वारा होता है। अन्न रस का निर्माण संतुलित आहार के पाचन के परिणाम स्वरूप होता है। यह अन्नरस भोजन का सार अंश (Abstract) होता है।

(End Product of food after digetion is called ANNA RASA)

धातु पोषण न्याय (Theory of Dhatu Posan or Prinicple of Tissue Formation & Nutrition)

  1. क्षीर दधि न्याय
  2. केदारिकुल्या न्याय
  3. खले कपोत न्याय
  4. एक काल पोषण न्याय

क्षीरदधि न्याय

इस न्याय को सर्वात्म परिणाम पक्ष अथवा क्रम परिणाम पक्ष भी कहते है। इस न्याय के अनुसार जिस प्रकार दूध दही में परिवर्तित होता है वैसे ही रस धातु- रक्तधातु में, रक्त धातु मांस धातु में, मासं धातु मेद धातु में, मेद धातु अस्थिधातु में, अस्थि धातु मज्जा धातु में एवं मज्जा धातु शुक्र धातु में पूर्ण रूप से परिवर्तित हो जाती है। इस पक्ष को क्षीर दधि न्याय के उदाहरण से समझाया गया है। जिस प्रकार दूध दही में परिवर्तित हो जाता है वैसे ही रसादि धातुएँ क्रमश उत्तर धातुओं का निर्माण एवं पोषण करती हैं।

पूर्व धातु से उत्तर धातु अर्थात् रस से रक्त, रक्त से मांस धातु, मांस धातु से मेदधातु मेद धातु से अस्थि धातु, अस्थि से मज्जा एवं मज्जा से शुक्र धातु का निर्माण होता है। इसलिए इसे क्रम परिणाम पक्ष कहते हैं।

पूर्व धातु उत्तर धातु में पूर्णरूपेण (सर्वात्मपरिणाम) से परिवर्तित होती है। इसलिए इसे सर्वात्मपरिणाम पक्ष भी कहते हैं।

तत्र रसः स्वाग्निपच्यमानः रक्ततां याति, रक्तं मांसतामित्यादि पूर्व पूर्वधातुपरिणामादुत्तरोतरधातूत्पादः यथा क्षीराददधि भवन्ति, दघ्नौ, नवनीतं नवीनतोद् घृतं घृताद् घृतमण्डः इत्येक पक्ष। (च. चि. 15/16 चक्रपाणि)

अर्थात् जिस प्रकार दूध सम्पूर्ण रूप से दही के रूप में परिवर्तित हो जाता है और दही नवनीत के रूप में, नवनीत घृत के रूप में परिवर्तित होता है। इसी प्रकार रस स्वाग्नि पाक से रस धातु का, इसके पश्चात् रस धातु पर

रक्ताग्नि की क्रिया से रक्तधातु, फिर रक्त में स्थित मांसधर्मी अंश पर मांसाग्नि से मांस धातु का निर्माण होता है। इसी प्रकार मेद, अस्थि, मज्जा एवं शुक्र धातु का निर्माण उनकी अग्नियों के द्वारा होता है।

धातुओं का निर्माण काल

सुश्रुतमतानुसार अन्नरस प्रत्येक धातु में 3015 कला (110 घण्टे) रुकता है और इस प्रकार लगभग एक मास में रस से पुरुषों में शुक्र एवं स्त्रियों में आर्तव का निर्माण होता है। (सु. सू. 14/15)

कुछ आचार्यों के अनुसार एक दिन एवं रात्रि में रस धातु से शुक्र धातु का निर्माण होता है। कुछ आचार्य के अनुसार रस से शुक्र के निर्माण में 6 दिन का समय लगता है ऐसा मानते है। अन्य कुछ आचार्य रस से शुक्र निर्माण में 1 मास का समय लगता है मानते हैं

केचिदाहुरहोरात्रात् षडरात्रादपरे, परे।
मासेन प्रयाति शुक्रत्वमन्नं पाकक्रमादिभिः।। (अ. हृ. शा. 3 / 15 )

कुछ आचार्यों के अनुसार रसधातु से शुक्रधातु का निर्माण काल व्यक्ति की अग्नि एवं आहार की भिन्नता के कारण भिन्न होता है। जैसे वृष्याहार शीघ्र (अहारोत्र) (24 घण्टे में) ही शुक्र का निर्माण करता है।

चक्रपाणि ने अपनी टीका में बल के संदर्भ में यह दृष्टांत दिया है कि जिस प्रकार एक बलवान व्यक्ति कूप से जल निकाले तो उसकी बांहों में अधिक बल के कारण वह चक्र को तेज से घुमाकर शीघ्र ही जल निकाल देता है एवं जिसमें बल की कमी होगी, उसे अधिक समय लगता है। ठीक वैसे ही उत्तम अग्नि वालों में रसधातु से शीघ्र ही शुक्र का निर्माण होता है।

क्षीरदधि न्याय का खण्डन :- आचार्य चक्रपाणि ने क्षीरदधिन्याय या क्रम परिणाम पक्ष को सही नहीं माना है। उनके अनुसार यदि व्यक्ति तीन चार दिन तक उपवास करे तो रस एवं रक्त धातु नष्ट हो जायेंगी और एक मास तक भोजन न करने पर केवल शुक्र धातु ही शेष रहेगी। अतः रस एवं रक्त के बिना जीवन असंभव है। अतः यह मत ठीक नहीं है।

आधुनिक मतानुसार क्षीरदधिन्याय :- आधुनिक मतानुसार यह पाचन (Digestion) एवं धातु पोषण (Metabolic process) में होने वाली प्रक्रिया है। खाये हुए आहार में उपस्थित कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन, वसादि पाचन एवं चयापचय के द्वारा शरीर में उपस्थित ग्लूकोज, शुक्रोज, ग्लेक्टोज, एमिनो एसिड, ग्लेसरोल के समान परिवर्तित हो, शरीर को ऊर्जा एवं पोषण प्रदान करते है। अतः यह परिवर्तन वैसा हि होता है जैसा दूध दही में परिवर्तित होता है।

दही से नवीनत एवं तक्र बनती है एवं नवनीत से घृत बनता है। ठीक उसी प्रकार प्रोटीन से Tripetide- Dipeptide एवं अंत में Amino acid बनते हैं।

आयुर्वेद में पांचभौतिक आहार के पृथ्वी, जल, वायु, अग्नि, आकाशयी द्रव्य सूक्ष्माणुओं में परिवर्तित हो धातुसम होकर कालान्तर में धातुओं, उपधातुओं एवं मलों का पोषण एवं निर्माण करते है।

केदारि कुल्या न्याय

बगीचे को सींचने के लिए जब पानी उसके जल स्रोत से छोड़ा जाता है तो जो क्यारी जलस्रोत के जितने समीप होती है, उसका पोषण पूर्व में एवं दूरस्थ क्यारी को पोषण पश्चात् मिलता है। ठीक उसी प्रकार अन्नरस समस्त धातुओं को पोषण प्रदान करता है एवं अन्नरस के सबसे ज्यादा समीप रसधातु होती है। अतः सर्वप्रथम पोषण रस धातु का होता है। इस प्रकार समस्त धातु रस, रक्त, मांस, मेद, अस्थि मज्जा, शुक्र का क्रमशः पोषण एवं निर्माण केदारि कुल्या न्याय के अनुसार होता है।

केदारी कुल्यान्यायमतानुसार अन्न रस ही प्रत्येक धातु के आशय में जाकर उन्हें तृप्त करता है। जैसे रस रक्त धातु के आशय में जाकर रक्त के संदृश गंध, वर्ण को प्राप्त करता है तथा रक्त सधर्मी अंश से रक्त का निर्माण एवं पोषण करता है। वहीं अन्न रस समस्त धातुओं में पहुँचकर मांसधर्मी अंश, मेद सधर्मी अंश, अस्थि सधर्मी अंश, मज्जा सधर्मी अंश, शुक्रसधर्मी अंश के तत् तद् धातुओं का निर्माण एवं पोषण करता है।

‘सारस्तु सप्तभिर्भूयो यथात्वं पच्यतेऽग्निभिः। (अ. ह. शा 3/61)

इस प्रकार अन्नरस सातो धातुओं की अग्नियों से क्रमानुसार पाक होकर उन धातुओं में परिणित हो जाता है।

आधुनिक मतानुसार केदारि कुल्या न्याय से तात्पर्य कोशिकाओं में अन्नरस का Diffusion, osmosis एवं Metabolism process से लेना चाहिए।

Simple diffusion के द्वारा Solutes एवं Gases कोशिकाओं के अंदर प्रविष्ट होती है ये तत्व कोशिका के अंदर Low concentration के कारण Extracellular fluid से Cell के अंदर खींचे जाते हैं। The Rate of entery is proportional to the solibility of the solute in the hydrophobic core of the mem- brane. simple diffusion high concentration से Lower concentration की तरफ होता है। इस प्रक्रिया में ऊर्जा की आवश्यकता नहीं होती है।

Osmosis – it is the spontaneous net movement of solvent (liquid) molecule through a selectively permeable membrane into a region of solute concentration, in the direction that tends to equilize the solute.

खले कपोत न्याय

खलियान में दाना चुगने के पश्चात् कपोत (Pigeon) अपने घौंसले को जाते है और कपोत का पर जितना दूर होगा उसको वहाँ पहुँचने में उतना ही अधिक समय लगेगा। ठीक उसी प्रकार से धातुओं का पोषण एवं निर्माण अन रस के द्वारा होता है। प्रत्येक कपोत का अपने घौंसले को लौटने का मार्ग पृथक्-पृथक् होता है। अर्थात् जो जितनी दूरी की होगी एवं खीतसू के आकार की भिन्नता के कारण अधिक अथवा कम समय लेगया।

यह न्याय आधुनिको के Mediated transport से मिलता है।

Mediated transport :- Many molecules e.g. glucose, aminoacids etc have large diameter and are not lipid soluble they are transport by mediated transport, in mediated transport the molecule needs a carrier molecule, the carrier molecule is a protein molecule in the cell membrane although the molecule crosses the cell membrane by using the carrier molecule, carrier mediated transport are two types.

  1. Active transport
  2. Facilitated transport

Active transport :- Molecule can move uphill for example a low concentration zone to high concentration zone this required energy which comes from ATP.

Facilitated transport :- In this process, the transport although occuring via a car- rier the solute molecule moves from high concentration to lower concentration. Body glu- cose moves from ECF into cytoplasm via this process, the insulin helps the faciliated diffu- sion of glucose frome ECF to ICF.

एक काल पोषण न्याय

आहार का अन्नवह स्रोतस् में पाचन होने के पश्चात् सार एवं किट्ट में आहार विभाजित होता है। सार भाग अन्न रस होता है एवं किट्ट भाग मूत्र एवं पुरीष होता है। अन्न रस समान वायु के द्वारा यकृत से होता हुआ हृदय पहुँचता है एवं वही अन्नरस व्यान वायु के द्वारा समस्त शरीर में फेका जाता है एवं सभी धातुओं का पोषण एक साथ इसी अन्नरस के द्वारा होता है।

व्यानेन रसधातुर्हि विक्षेपोचितकर्मणा।
युगपत् सर्वतोऽजस्रं देहे विक्षिप्येत् सदा।। (च. चि. 15/36)

इस न्याय के संदर्भ में अष्टाङ्ग हृदय में लिखा हैः-

आहाररसादेककालं सप्तसु धातुस्रोतःसु प्रवेशिताद्।
रसरक्तादयो धातव उत्पद्यन्ते इति एक काल धातुपोषण पक्षः ॥ (अ. ह. शा. 3/62 पर अरुणदत्त टीका)

अर्थात् आहार रस एक ही समय में सातों धातुओं में प्रवेश कर रस, रक्तादि धातुओं को उत्पन्न एवं पोषण करता है।

यह न्याय सर्वाधिक मान्य है।

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