क्रिया शब्द की परिभाषा एवं पर्याय (Definition and Synonyms of Term Kriya)

by DR. HAMID HUSSAIN

पर्याय – कर्म, यत्न, प्रयत्न, कर्मसमारम्भ

प्रवृत्ति खलु चेष्टा कार्यार्था, सैव क्रिया कर्म यत्न कार्य समारम्भश्च। (च. वि. 8/77)

कार्य निमित्त की गई चेष्टा अर्थात् क्रिया कार्य प्रवृत्ति है। क्रिया, कर्म, यत्न, प्रयत्न तथा कार्य समारम्भ ये पर्याय है।

क्रिया शब्द व्यापक शब्द है किन्तु शरीर क्रिया विज्ञान की दृष्टि से क्रिया से तात्पर्य शरीर एवं मन के व्यापार से लेना चाहिए।

कर्मवाचामनसः शरीर प्रवृत्तिः व्यापारः ।
अनेन वागादि भेदेन कर्मणः त्रैविध्यमपि उक्तम् ॥

अर्थात् वाणी, मन एवं शरीर की प्रवृत्ति अर्थात् व्यापार कर्म है इससे वाणी आदि भेद से त्रिविध कर्म कहे गये हैं इन्हें ही वाणी, मन एवं शरीर की क्रिया कहा जाता है।

शरीर क्रिया विज्ञान

“शरीरमधिकृत्यं कृतं तन्त्रं शारीरम् तत्र रचना प्रतिपादकं रचना शारीरम् क्रिया प्रतिपादकम् क्रिया शारीरम्।”

अर्थात् शरीर को विषय मानकर जिस तंत्र की रचना की गई उसे शारीर कहते है, रचना का वर्णन जिस तंत्र में किया जाता है रचना शारीर एवं जिस शास्त्र में शरीर में होने वाली क्रियाओं का वर्णन किया जाता है क्रिया शारीर कहलाता है।

जिस शास्त्र में समस्त प्राकृत क्रियाओं के कारक दोषों (वात, पित्त एवं कफ) की प्राकृत क्रियाओं एवं स्वरूप, धातुओं के प्राकृत स्वरूप, कार्यों का तथा मलों की प्राकृत अवस्थाओं का वर्णन किया जाता है, आयुर्वेदीय क्रिया शरीर में चेतना के कारक आत्मा एवं समस्त क्रियाओं के उत्प्रेरक कारक मन का वर्णन जहाँ मिलता है शरीर क्रिया विज्ञान या क्रिया शरीर कहलाता है।

क्रिया शारीर की दृष्टि से इस शरीर को तीन वर्गों में विभाजित किया जाता है-

  1. दोष वर्ग (Regulatory & functional unit of body)
  2. धातु वर्ग (Constracting & supporting unit)
  3. मल वर्ग (Excretory mechanism)

1. दोष वर्ग

स्वातन्त्र्येण दुष्टिकर्तृत्वं दोषत्वम् तथा प्रकृत्यारम्भकत्वे सति दुष्टि कर्तत्वं दोषत्वमिति दोष लक्षणम्।। (मधुकोष)

अर्थात् जो स्वतंत्र रूप से स्वयं दुष्ट हो एवं धातु एवं मलों को दूषित करे, साथ ही जो आर्तव एवं शुक्र संयोग के समय प्रकृति का निर्माण करें, वे दोष हैं। इन द्रव्यों के द्वारा ही शरीर की समस्त क्रियाएँ संचालित होती है।

दोषों के दो प्रकार हैं-

(I) शारीरिक दोष

  • वात दोष (Control system of body)
  • पित्त दोष (Catabolic unit)
  • कफ दोष (Anabolic unit)

(II) मानसिक दोष :-

  • रजो दोष (Exciting unit)
  • तमदोष (Depressing unit)

2. धातु वर्ग

जो शरीर का धारण (निर्माण) एवं पोषण करे उन्हें धातु कहा जाता है। ये संरचना शरीर का निर्माण करते हैं।

  1. रस धातु (Plasma, lymph, tissue fluid) 2.
  2. मांस धातु (Muscular Tissue)
  3. अस्थि धातु (Bone Tissue)
  4. रक्त धातु (Blood Tissue)
  5. मेद धातु (Adipose Tissue)
  6. मज्जा धातु (Bone Marrow)
  7. शुक्र धातु (Reproductive Tissue)

3. मलवर्ग

‘मलिनीकरणान्मलाः’ जो शरीर को मलीन करें, उन्हें मल कहते है। मलीन करना मलों का अपना धर्म होता है। इसलिए मल कहते है किन्तु आयुर्वेदीय शरीर क्रिया में ‘दोष धातु मल मूलं हि शरीरिम्’ के अनुसार दोष, धातुओं के समान मल को भी शरीर का मूल माना है। अर्थात् इनका निर्माण एवं अपशिष्ट पदार्थों का निष्कासन शरीर को स्वस्थ रखने एवं जीवन के लिए आवश्यक हैं। अतः मल को भी दोष, धातुओं के समान ही क्रिया-शारीर का मूलभूत तत्व माना है।
अतः दोष, धातु एवं मल को क्रिया शारीर की विषय वस्तु माना है।

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