शरीर की परिभाषा – शरीर क्रिया विज्ञान

by DR. HAMID HUSSAIN
शरीर की परिभाषा - शरीर क्रिया विज्ञान

शरीरनाम् चेतनाधिष्ठानभूतं पंचमहाभूत विकारसमुदायात्मकं समयोगवाही। (च. शा. 6/3)

अर्थात् चेतना का अधिष्ठान, पंचमहाभूतों के विकार से उत्पन्न, समुदाय रूप एवं समयोगवाही शरीर होता है। अर्थात् शरीर की उत्पत्ति पंचमहाभूतों के विकार अर्थात् रस, रक्त, मांस मेद, अस्थि, मज्जा शुक्रादि के द्वारा होती है एवं ये महाभूत हमारे शरीर में निश्चित अनुपान में पाये जाते हैं। जब इनका असंतुलन होता है तब शरीर में रोगोत्पत्ति होती है।

समयोगवाही का तात्पर्य है कि पंचमहाभूतों के विकार से उत्पन्न दोष, धातु, मलों का सम अवस्था में रहना इनके विषम होने पर शरीर स्थिर (स्वस्थ) नहीं रहता है इस कारण इनकी साम्यता अपेक्षित है। जब इस शरीर में धातु विषम होती है तब शरीर में रोग एवं क्लेश उत्पन्न होते है अथवा मृत्यु होती है।

शरीर की परिभाषा - शरीर क्रिया विज्ञान

शरीर की व्युत्पत्ति एवं पर्याय

व्युत्पत्ति – शृ धातु + ईरन् प्रत्यय लगकर शरीर शब्द बना है। अर्थात् “शीर्यते इति शरीरम्” ‘शरीर’ शब्द ‘शृ धातु’ से निकला हुआ है। शरीर वह द्रव्य है। जिसमें प्रतिक्षण नाश की क्रिया या विघटन क्रिया (Catabolic process) होती है।

शरीर शब्द के पर्याय (Synonyms of the Sharir) – देह, काय, पुरुष, कलेवर, गात्र, वपु, आदि हैं और इनके सम्यक् ज्ञान से शरीर का पूर्ण ज्ञान होता है।

देह शब्द ‘दिह उपचये’ धातु से निर्मित है दिह् धातु में घञ् प्रत्यय लगकर देह शब्द बना है जिससे ज्ञात होता है कि जिसमें निरन्तर वृद्धि की क्रिया (Anabolic functions) होते हैं।

विघटन के परिणाम स्वरूप शरीर की कोशिकाओं में निरन्तर नाश की प्रक्रिया होती है एवं उनके स्थान पर नवीन कोशिकाओं (Cells) का निर्माण होता है तो शरीर का नाश नहीं होता है अर्थात् नाश एवं वृद्धि की क्रिया (Catabolic & anabolic process) जीवित शरीर में निरन्तर चलती रहती है। जिसमें शरीर स्थिर रहता है।

बाल्यावस्था में नाश की अपेक्षा वृद्धि का कार्य अधिक रहता है। युवावस्था में दोनों क्रियाएँ समान रूप से चलती रहती है एवं वृद्धावस्था में विघटन की क्रिया अधिक तीव्रता से होती है।

काय शब्द भी शरीर का पर्याय है काय शब्द ‘चिञ् चयने’ धातु से बना है। चिञ् धातु (Cells) का प्रयोग एकत्रित करने के अर्थ में हुआ है जिसमें अनके देह परमाणु अथवा कोष (Cells) एकत्रित होकर समान कार्य के आधार पर ऊतकों (Tissue) का निर्माण करते हैं और विभिन्न ऊतकों के द्वारा शरीर निर्मित होता है। अर्थात्-

Cell – Tissue – Organ – System – Body का निर्माण होता है।

Body is one which continuously is replenished with food material.

पुरुष – पुरुष भी जीवित शरीर का पर्यायवाची शब्द है।

पुरुष शब्द की व्युत्पत्ति “पुरि शरीरे शेते निवसति इति पुरुषः” इसमें पुरि शब्द से आत्मा का बोध होता है, क्योंकि शरीर उसके विधमान रहने से जीवित रहता है और उसी से शरीर को चैतन्य की प्राप्ति होती है।

कलेवर – शुक्र का श्रेष्ठ परिणाम कलेवर है।

गात्र – जो गमनशील है उसे गात्र कहते है।

संहनन – जो पाँच महाभूतों का संगठन हो उसे संहनन कहते है।

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